Monday, January 06, 2014

दर्द-ए-जिंदगी












जिंदगी दर्द में दफ़न हो गई इक रात,
उदासी बिखर गई चाँदनी में घुल कर....!!
चाँद ने उगले दो आँसू,
ज़र्द साँसें भी फड़फड़ा कर बुझ गयी......!!

इस दफा चिता पर मेरे-
मेरी रूह भी जल उठेगी.........!!




मानव मेहता 'मन'  

4 comments:

  1. Replies
    1. शुक्रिया कालीपद प्रसाद जी...!!

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  2. शुक्रिया रविकर साहब...!!

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आपकी टिपणी के लिए आपका अग्रिम धन्यवाद
मानव मेहता