Thursday, October 17, 2013

मनचाहे...ख़ामोश अक्षर













पंजाबी नज़्म और उसका हिंदी में अनुवाद...


ਤੇਰੀ ਖਾਮੋਸ਼ੀ ਦੇ ਇੱਕ ਇੱਕ ਅਖੱਰ
ਮੈਂਨੂੰ ਵਾਜਾਂ ਮਾਰਦੇ ਨੇ, ਬੁਲਾਓਂਦੇ ਨੇ
ਤੇ ਮੈਂ ਵੀ ਇਹਨਾਂ ਦੇ ਨਾਲ
ਗੱਲਾਂ ਕਰਦੀ ਕਮਲੀ ਹੋਈ ਫਿਰਦੀ ਹਾਂ ...
ਰਾਤ ਦੀ ਕਾਲੀ ਚਾੱਦਰ ਉਤੇੱ
ਮੈਂ ਰੋਜ਼ ਬਿਛੌਂਦੀ ਹਾਂ ਇਹਨਾਂ ਅੱਖਰਾਂ ਨੂੰ
ਪੁਛੱਦੀ ਹਾਂ ਤੇਰਾ ਹਾਲ
ਕੁੱਝ ਅਪਣਾ ਸੁਨਾਨੀ ਹਾਂ ...
ਤੇ ਇਹ ਅੱਖਰ ਮੈਨੂੰ, ਮੇਰੀ ਬਾਂਹ ਫੜ ਕੇ
ਲੈ ਜਾਂਦੇ ਨੇ ਦੂਰ ਅਜਿਹੇ ਅੰਬਰਾਂ ਚ
ਜਿਥੇ ਤੇਰਾ ਤੇ ਮੇਰਾ ਰਿਸ਼ਤਾ
ਮੇਰੀ ਸੋਚ ਦੇ ਮਾਫਿਕ ਮਿਲਦਾ ਏ ਮੈਨੂੰ ...
ਤੇ ਮੈਂ ਤੇਰੇ ਇਹਨਾਂ ਅੱਖਰਾਂ ਨਾਲੋਂ ਸੁਨ ਲੈਨੀ ਹਾਂ
ਅਪਣਾ ਮਨਚਾਹਾ.....



तेरी ख़ामोशी के एक एक अक्षर
मुझे आवाज़ लगाते हैं, बुलाते हैं
और मैं भी इनके साथ
बातें करती पागल हुई फिरती हूँ
रात की काली चादर पर
मैं रोज़ बिछाती हूँ इन अक्षरों को
पूछती हूँ तेरा हाल
कुछ अपना सुनाती हूँ
और ये अक्षर मुझे मेरी बांह पकड़ कर
ले जाते हैं दूर ऐसे आसमान में
जहाँ तेरा और मेरा रिश्ता
मेरी सोच के मुताबिक मिलता है मुझे...
और मैं तेरे अक्षरों के साथ सुन लेती हूँ
अपना मनचाहा
.......!!




मानव मेहता 'मन'

10 comments:

  1. ख्वाबों ही ख़्वाबों में अपना मनचाहा सुनने का मज़ा ही कुछ ओर है ...
    खूब्सूतर ख्याल से बुनी है नज़म ...

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    1. शुक्रिया दिगम्बर जी...

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  2. मनचाहा सुनने की ख्वाहिश लिए मैं अक्षरों के नैवेद्य चढ़ाती हूँ तेरी ख़ामोशी के आगे और अपने सुरों की प्राणप्रतिष्ठा करती हूँ - जीने के इस सुख के आगे मैं मीरा सी लगती हूँ

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    1. वाह... बहुत खूब रश्मि जी...
      शुक्रिया।

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  3. बहुत ही सुन्दर रचना....

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    1. धन्यवाद... संजय भाई...

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  4. बहुत ही अच्छी लगी मुझे रचना........शुभकामनायें ।
    सुबह सुबह मन प्रसन्न हुआ रचना पढ़कर !

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    1. संजय भाई... बहुत बहुत शुक्रिया....

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  5. बहुत सुन्दर भाव ! बढ़िया अभिव्यक्ति

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आपकी टिपणी के लिए आपका अग्रिम धन्यवाद
मानव मेहता