Saturday, August 10, 2013

माँ, तुम यहीं रुको, मैं बस अभी आया |












मैले कुचैले कपड़ों में लिपटी
एक बूढ़ी औरत
सर से लेकर पाँव तक झुकी हुई
एक वक्त की रोटी भी नसीब नहीं जिसको
हाथ बाए खड़ी है चौराहे पर
पेट भरने के लिए
मांगती है भीख |

मुरझाई हुई सी
इन बूढ़ी आँखों को
चंद सिक्कों के आलावा
तलाश है कुछ और |

झाँका करती है अक्सर
आते जाते लोगों के चेहरों में
ढूँढा करती है उस शख्स को
जो पिछले बरस कह के गया था
‘माँ, तुम यहीं रुको, मैं बस अभी आया |’


मानव 'मन' 

32 comments:

  1. bahut achhi kavita .... maa vishy par ek sangrah nikaal rahi hun aap chahein to uske liye do rachnayein bhej sakte hain ....vistar se jaanne ke liye sampark karein ...

    harkirathaqeer@gmail.com

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  2. उफ़....बहुत ही मार्मिक शब्द चित्रण ....दर्द भरी रचना

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    1. शुक्रिया मंजूषा जी....

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  3. मार्मिक.. बदलत्ते दौर की तस्वीर है ये । कितनी अजीब बात है एक अकेली माँ अपने सभी बेटों को हर हाल में पाल लेती है उफ्फ तक नही करती .. पर समय आने पर बच्चों से एक माँ नही पाली जाती ।

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  4. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (11-08-2013) के चर्चा मंच 1334 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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    1. शुक्रिया अरुन भाई।

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  5. बहुत अच्‍छी रचना...

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  6. बहुत सुंदर , आपकी इस उत्कृष्ट रचना की प्रविष्टि कल रविवार ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in/ पर भी .. कृपया पधारें

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    1. शुक्रिया शालिनी जी।

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  7. मार्मिक एवँ हृदयस्पर्शी !

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    1. साधना जी, शुक्रिया।

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  8. बेहद मार्मिक शब्द चित्र बना दिया आपने ...... बहुत खूब !

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    1. शुक्रिया निवेदिता जी।

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  9. बहुत मार्मिक, लेकिन काश ये हकीकत में न होता...!

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    1. हंजी स्नेहा जी।
      काश, मगर इस हकीकत को झुठलाया नहीं जा सकता।

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  10. ह्रदय स्पर्शी, काश बेटे का भी ह्रदय पिघले ।

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    1. एक साल से इन्तज़ार है आशा जी, अब तक तो नहीं पिघला।

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  11. मानव ...अभी तक नहीं उबर पाई.....

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    1. सरस जी, मैं रोज़ इस बूढी औरत को देखता हूँ।

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  12. बहुत मार्मिक प्रस्तुति ।

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  13. मार्मिक ... क्या कहें ऐसे बच्चों के बारे में ... कितना स्वार्थी हो सकते हैं ..

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    1. जी दिगम्बर जी,
      कलयुग है।

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  14. yadi sachmuch koi majboori hai jiske karan koi asamarth hai mata-pita ko sahara dene mein to dher sare vriddhashram hain, samaj seva kendra hain ,wahan le jaye .madad mange, par is tarah ek asahay insaan ko raste mein chhodh kar gayab ho jana bohat galat baat hai.
    bohat hi marmsparshi rachna Manav ji

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    1. सही कह रहें हैं अपर्णा जी,
      मगर क्या करें आजकल ऐसे बच्चों की कमी नही।
      कलयुग है जी।

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  15. दिल की गहराई तक पहुँचते तीखे शब्द ! जमाने की हकीकत बयां करते हैं

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आपकी टिपणी के लिए आपका अग्रिम धन्यवाद
मानव मेहता