रात भर झांकता रहा चाँद
मेरे दिल के आँगन में.......
कभी रोशनदान से
तो कभी चढ़ कर मुंडेरों पे
कोशिश करता रहा
मेरे अंदर तक समाने की.....
जाने क्या ढूँढ रहा था
गीली मिट्टी में...!!
तेरी यादों को तो मैंने
संभाल के रख दिया था
इक संदूक में अरसा पहले......
फिर भी न जाने कैसे
उसे उनकी महक आ गई...
चलो अब यूँ करें कि
आज दिल के सारे खिड़की-दरवाजे
बंद करके सोयें
कहीं आज फिर
चुरा न ले वो तुझे मुझसे......!!
Manav Mehta 'मन'