Friday, August 23, 2013

चाँद और तेरी महक









रात भर झांकता रहा चाँद
मेरे दिल के आँगन में.......
कभी रोशनदान से
तो कभी चढ़ कर मुंडेरों पे
कोशिश करता रहा
मेरे अंदर तक समाने की.....

जाने क्या ढूँढ रहा था
गीली मिट्टी में...!!

तेरी यादों को तो मैंने
संभाल के रख दिया था
इक संदूक में अरसा पहले......

फिर भी न जाने कैसे
उसे उनकी महक आ गई...

चलो अब यूँ करें कि
आज दिल के सारे खिड़की-दरवाजे
बंद करके सोयें
कहीं आज फिर
चुरा न ले वो तुझे मुझसे......!! 



Manav Mehta 'मन'

Saturday, August 10, 2013

माँ, तुम यहीं रुको, मैं बस अभी आया |












मैले कुचैले कपड़ों में लिपटी
एक बूढ़ी औरत
सर से लेकर पाँव तक झुकी हुई
एक वक्त की रोटी भी नसीब नहीं जिसको
हाथ बाए खड़ी है चौराहे पर
पेट भरने के लिए
मांगती है भीख |

मुरझाई हुई सी
इन बूढ़ी आँखों को
चंद सिक्कों के आलावा
तलाश है कुछ और |

झाँका करती है अक्सर
आते जाते लोगों के चेहरों में
ढूँढा करती है उस शख्स को
जो पिछले बरस कह के गया था
‘माँ, तुम यहीं रुको, मैं बस अभी आया |’


मानव 'मन'