मेरे जिस्म से निकला है
लावा
इक शोला बैठ गया है छिप
कर -
रूह के पिछले हिस्से में
इक खला सी बस गयी है
......
ना उदासी है ना हैरानी
है
न ख़ामोशी , न तन्हाई
सीला सा मौसम है बस...!
न धूप है ना बारिश
बस चिपचिपे से लम्हें
बरसते जाते हैं बादलों
से ....
मैं बचते बचाते ; इन लम्हों से
धकेलता हुआ पीछे
बढ़ता जाता हूँ बादलों की
ओर ...
इसी एक बादल पर पाँव रख
कर
मैं उस पार उतर जाऊँगा
..
बस कुछ ही लम्हों में -
इस जहाँ से गुजर जाऊँगा ...!!
मानव मेहता 'मन'
फिर भी कुछ लम्हें अपनी छाप छोड़ ही जाएँगे
ReplyDeleteजी अंजू जी, बिलकुल।
Deleteलम्हें तो लम्हें है। जहाँ गिरेंगे अपनी दास्तान बना ही लेते हैं।
शुक्रिया।
Kya baat hai..
ReplyDeleteshukriya sameer ji...
Deleteअच्छा लिखा है मानव ..जिस्म पर तैरता लावा , खला बन उभरते एहसासात ,लम्हों की चिपचिपाहट से बेचैन एक बादल की तलाश , जिंदगी के एक हिस्से से गुजर जाना ।
ReplyDeleteह्म्म्म्म्म....
DeleteBhaut achha likha hai manav
ReplyDeletethnks Rashmi G...
Deleteबादलों पर र्पांव रखकर.....
ReplyDeleteबहुत खूब!
अल्पना जी शुक्रिया।
Deleteआपने वो कर के देखा था हिंदी में टाइप । हुआ आपसे?
आपने लिखा....
ReplyDeleteहमने पढ़ा....और लोग भी पढ़ें;
इसलिए बुधवार 031/07/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in ....पर लिंक की जाएगी.
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है .
धन्यवाद!
शुक्रिया यशोदा जी।
Deleteआभार
isi ek badal par panv rakhkar mani us par utar jaoonga.... kya baat, kya baat
ReplyDeleteBeautiful composition
thanks alot Aparna ji...
Deleteहर कठिन परिस्थिति से पार होना है आगे बढ़ना है ... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteसंगीता जी, बिलकुल सही खा आपने।
Deleteशुक्रिया।
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteकैलाश जी,
Deleteधन्यवाद।
Aap ne theek hi likhaa hai.
ReplyDeleteVinnie,
thanks Vinnie mam... :)
Deleteलाजवाब शब्द ... लम्हों से बचना आसां नहीं ...
ReplyDeleteजी दिगम्बर जी,
Deleteशुक्रिया।
वाह , बहुत सुंदर लिखा है मानव भाई आपने, शुभकामनाये
ReplyDeleteधन्यवाद शोर्य भाई।
Deleteबहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeletelatest post,नेताजी कहीन है।
latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु
शुक्रिया कालीपद जी।
Deletethanks Zeal...
ReplyDeleteAAKHIRI CHAAR LAIN HI KYON USAKE PAAR KYON NAHI*****
ReplyDeleteFIR BHI KHUBSURAT AIHASAAAS
uske paar kaise Raamakant ji...
Deletei dnt get it what u say...
vistaar se btaiyega...
shukriya
बहुत दिनों बाद एक अच्छी रचना पढने को मिली. बहुत खुबसूरत
ReplyDeleteशुक्रिया स्नेहा जी,
Deleteरचना को पसंद करने के लिए।
बहुत बढ़िया ....... मैं बचते बचाते ; इन लम्हों से
ReplyDeleteधकेलता हुआ पीछे
बढ़ता जाता हूँ बादलों की ओर ........ बेहद खूबसूरत
धन्यवाद नीता जी।
Delete
ReplyDeleteअति सुन्दर मानव जी