Monday, July 29, 2013

लम्हों का सफर















रुखसत होने को अब चंद ही लम्हें बचे हैं .....
मेरे जिस्म से निकला है लावा 
इक शोला बैठ गया है छिप कर -
रूह के पिछले हिस्से में 
इक खला सी बस गयी है ......

ना उदासी है ना हैरानी है 
न ख़ामोशी , न तन्हाई 
सीला सा मौसम है बस...!
न धूप है ना बारिश 
बस चिपचिपे से लम्हें 
बरसते जाते हैं बादलों से ....

मैं बचते बचाते ; इन लम्हों से 
धकेलता हुआ पीछे 
बढ़ता जाता हूँ बादलों की ओर ...

इसी एक बादल पर पाँव रख कर 
मैं उस पार उतर जाऊँगा ..
बस कुछ ही लम्हों में -
इस जहाँ से गुजर जाऊँगा ...!!


मानव मेहता 'मन' 


34 comments:

  1. फिर भी कुछ लम्हें अपनी छाप छोड़ ही जाएँगे

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी अंजू जी, बिलकुल।
      लम्हें तो लम्हें है। जहाँ गिरेंगे अपनी दास्तान बना ही लेते हैं।
      शुक्रिया।

      Delete
  2. अच्छा लिखा है मानव ..जिस्म पर तैरता लावा , खला बन उभरते एहसासात ,लम्हों की चिपचिपाहट से बेचैन एक बादल की तलाश , जिंदगी के एक हिस्से से गुजर जाना ।

    ReplyDelete
  3. बादलों पर र्पांव रखकर.....
    बहुत खूब!

    ReplyDelete
    Replies
    1. अल्पना जी शुक्रिया।

      आपने वो कर के देखा था हिंदी में टाइप । हुआ आपसे?

      Delete
  4. आपने लिखा....
    हमने पढ़ा....और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए बुधवार 031/07/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in ....पर लिंक की जाएगी.
    आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    लिंक में आपका स्वागत है .
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया यशोदा जी।
      आभार

      Delete
  5. isi ek badal par panv rakhkar mani us par utar jaoonga.... kya baat, kya baat
    Beautiful composition

    ReplyDelete
  6. हर कठिन परिस्थिति से पार होना है आगे बढ़ना है ... सुंदर प्रस्तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. संगीता जी, बिलकुल सही खा आपने।
      शुक्रिया।

      Delete
  7. बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति..

    ReplyDelete
  8. Aap ne theek hi likhaa hai.
    Vinnie,

    ReplyDelete
  9. लाजवाब शब्द ... लम्हों से बचना आसां नहीं ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी दिगम्बर जी,
      शुक्रिया।

      Delete
  10. वाह , बहुत सुंदर लिखा है मानव भाई आपने, शुभकामनाये

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद शोर्य भाई।

      Delete
  11. Replies
    1. शुक्रिया कालीपद जी।

      Delete
  12. AAKHIRI CHAAR LAIN HI KYON USAKE PAAR KYON NAHI*****
    FIR BHI KHUBSURAT AIHASAAAS

    ReplyDelete
    Replies
    1. uske paar kaise Raamakant ji...
      i dnt get it what u say...
      vistaar se btaiyega...
      shukriya

      Delete
  13. बहुत दिनों बाद एक अच्छी रचना पढने को मिली. बहुत खुबसूरत

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया स्नेहा जी,
      रचना को पसंद करने के लिए।

      Delete
  14. बहुत बढ़िया ....... मैं बचते बचाते ; इन लम्हों से
    धकेलता हुआ पीछे
    बढ़ता जाता हूँ बादलों की ओर ........ बेहद खूबसूरत

    ReplyDelete

  15. अति सुन्दर मानव जी

    ReplyDelete

आपकी टिपणी के लिए आपका अग्रिम धन्यवाद
मानव मेहता