Thursday, June 06, 2013

मुहब्बत का इत्र

















इस हवा के बदन पर मैंने 
अपनी मुहब्बत का इत्र छिड़का है .... 
और भेजा है तेरी ओर बंद लिफ़ाफे में भर कर ..... 

जब मिल जाए तो इसको 
धीरे से खोलना 
महसूस करना मेरी वफ़ा को 
और भर लेना साँसों में अपनी .... 

नई सुबह फिर से नया पैगाम भेजूँगा ....... 
तब तक अपने जिस्म को महकाए रखना इससे .... !!


'मन'


31 comments:

  1. waah manav...muhabbat ke itr ki mahak to kabhi kam nhi hoti..ye jism to kya rooh ko sarobar kar deti hai...

    tere ehsas ko bhar lu baaho'n me sanam
    fiza me faili hai aaj khushbu tere pyaar ki !!

    su..man

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    1. सुन्दर लिखा है।
      शुक्रिया।

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  2. क्या बात है ! वाह !

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    1. शुक्रिया साधना जी।

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  3. प्यार की खुशबू से भरी प्यारी सी कविता .. मानव जी बहुत बहुत बधाई!

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    1. शुक्रिया शालिनी जी।

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  4. हर एक को आपकी कल्पना समान रोज पैगाम भेजने वाला मिलना चाहिए। हर एक का जीवन खुशबूदार और महक से भरपूर हो। किसी अपने को मुहब्बत के इत्र से खुश रखना सुंदर।

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    1. हाहाहा विजय जी,
      जरुर, ऐसा सभी को मिलना चाहिए।
      शुक्रिया विजय भाई।

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  5. खुबसुरत सुगन्धित सन्देश !
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post मंत्री बनू मैं
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    1. धन्यवाद कालीपद जी।

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  6. वाह मानव......!!

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  7. वाह बहुत खुबसूरत भाव बहुत सुन्दर लगे !

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  8. वाह!
    बहुत खूब!
    नर्म से अहसास लिए हुए रचना.

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    1. शुक्रिया धीरेन्द्र जी,
      आपको बधाई हो आपके 150 वीं पोस्ट के लिए।

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  10. बहुत खूब .. ये तो काफी है उम्र को महकाने के लिए ...
    लाजवाब ...

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    1. हाहाहा, शुक्रिया दिगम्बर भाई।

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  11. वाह! बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना। सचमुच अति सार्थक प्रस्तुति। बधाईं।

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    1. तेजकुमार जी,
      बेहद शुक्रिया।

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  12. lajawab ........ bahut hi sundar

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  13. आपका धन्यवाद रजनीश जी।

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  14. बेहद रूमानी बेहद खुबसूरत! तारीफ़ को शब्द नहीं है...

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    1. शुक्रिया स्नेहा जी, thnks...

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  15. bhut hi khubsurat hain apke shabd or unhe itne khubsurat dhang se pesh krna ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,like it

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आपकी टिपणी के लिए आपका अग्रिम धन्यवाद
मानव मेहता