Friday, May 24, 2013

तुम्हारा एहसास




अभी अभी
पीपल की झड़ी पत्तियों को
एक तरफ रख कर
जला कर बैठा ही था कि
उसके धुएं में भी
तुम्हारा ही चेहरा नज़र आया
कल भी कुछ ऐसा ही हुआ था
जब रोशनदान से
सूरज की रोशनी
मेरे कमरे में पहुँची थी
तो लगा था
कि तुम आए हो
तुम हर जगह दिखती हो मुझको
तुम नहीं हो
पर...
हर वक़्त तुम्हारा एहसास
मेरे साथ रहता है...!!

मानव मेहता 'मन' 

Thursday, May 16, 2013

हाल-ए-जिन्दगी
















ना राह ना मंजिल, कुछ ना पाया जिन्दगी में
ना जाने कैसा मोड़ ये आया जिन्दगी में


तकलीफ,दर्द,चुभन,पीड़ा सब कुछ मिले इससे
फ़कत एक खुशी को ही ना पाया जिन्दगी में

वक़्त के मरहम ने सभी घाव तो भरे मेरे
मगर जख़्मों से बने दाग को पाया जिन्दगी में

औरों की खुशी के लिए अपनी खुशी भूल गए
मुस्कराते हुए अकसर गम छुपाया जिन्दगी में

तन्हाइयों को चीरती आवाज ना सुन सका कोई
इस कदर खुद को अकेला पाया जिन्दगी में..... 



मानव मेहता 'मन'

Friday, May 10, 2013

अल्फाज़











मेरे अल्फाज़ अब तुम मुझसे यूँ दगा ना करो
मैं जानता हूँ कि चंद महीनों से ,
मैंने कागज पर उतारा नहीं तुमको ...
एक मुद्दत से अपने जख्मों पर ,
तेरे नाम का मरहम नहीं रखा ...

मगर ऐ मेरे अल्फाज़
सब कसूर मेरा तो नहीं ....

तुमने भी तो कहाँ मेरे जेहन में आकर –
सोई हुई कविताओं को जगाया था कभी ....
और इन नज्मों की तारों को भी तो तुमने –
कभी थर-थराया नहीं था ....
जब कभी सर्द रातों में –
चाँदनी के आँगन टहलता था मैं –
तब भी तो तुम आते नहीं थे ...

और इक रोज जब उसके शहर मेरा जाना हुआ था –
तब कहाँ थे तुम ??
क्यूँ नहीं इक नज़्म बन कर –
उसके दरवाजे पर छूट आए थे तुम .......

खैर अब जो कागज कलम लिए बैठा हूँ मैं –
तो उतर आओ मेरे दिल के किसी कोने से –
इन पन्नों पर बिखर जाओ –
मेरे लहू के संग ...
चंद बातें कर लो मुझसे –
कि आज दिल उदास बहुत है ....!!


मानव मेहता ‘मन’ 

Thursday, May 02, 2013

रेस










इक ‘रेस’ सी लगी है मानो
दौड़ते जाते हैं सब एक दूसरे से आगे –

जाने सफर जिंदगी का मुकम्मल कब होगा !!


मानव मेहता ‘मन’