Wednesday, April 10, 2013

तेरा नाम





शाम ढली तो लेम्प के इर्द-गिर्द
कुछ अल्फाज़ भिन-भिनाने लगे.......
‘टेबल’ के ऊपर रखे मेरे ‘राईटिंग पेड’ के ऊपर-
उतर जाने को बेचैन थे सभी ......

कलम उठाई तो गुन-गुनाई एक नज़्म-
मूँद ली आँखें दो पल के लिए उसको सुनने की खातिर
हुबहू मिलती थी उससे –
एक अरसा पहले जिसे मैंने सुना था कभी ....

आँख खोली तो देखा –
कुछ हर्फ़ लिखे थे सफ्हे पर ...
महक रहे थे तेरा नाम बन कर
चमक रहे थे ठीक उसी तरह –
काली चादर पर आसमान की –
चंद मोती चमकते हैं जैसे ......

तेरा नाम सिर्फ तेरा नाम ना रह कर –
एक मुकम्मल नज़्म बन गई है देखो .....

इससे बेहतर कोई नज़्म ना सुनी कभी
ना लिखी कभी ....... !!

मानव मेहता 'मन' 

9 comments:

  1. .भावात्मक अभिव्यक्ति ह्रदय को छू गयी नवसंवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनायें नरेन्द्र से नारीन्द्र तक .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MANजाने संविधान में कैसे है संपत्ति का अधिकार-1

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  2. दुआ है ..वो नाम यूँ ही महकता रहे ... और यूँ ही मुकम्मल नज़्म बनती रहे..।
    इक तेरा नाम सुनकर लौट आते हैं ये लफ्ज़
    वरना लफ़्ज़ों का जाम अब खाली ही रहता है ।

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  3. वाकई...भावपूर्ण!!

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  4. कभी होगी भी नहीं कोई नज़्म तेरे जैसी .... वाह

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  5. बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति,आभार.
    आपको नवसंवत्सर की हार्दिक मंगलकामनाएँ!

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  6. बहुत खूब ... इससे बेहतर नज़्म तो हो ही नहीं सकती दुनिया में ..
    प्रेम की खुशबू अती रहती है इन लफ़्ज़ों से ...

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  7. बहुत ही सुंदर भाव संयोजन ....प्रेम की महक से सजी सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  8. बहुत सुंदर लिखा है...भावपूर्ण

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  9. मुहब्बत चीज ही ऐसी है .....

    बहुत सुंदर रचना ....!!

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आपकी टिपणी के लिए आपका अग्रिम धन्यवाद
मानव मेहता