Friday, April 26, 2013

ऐ मेरे नाहिद












बाद-ए-अरसे तो तू मुझको मिला है ऐ मेरे नाहिद   
फिर यूँ ना कर तू मुझसे अब ये बेरुखी की बातें 

कि मेरे हालात तुझे खोने की गुंजाईश नहीं रखते !!


‘मन’
* नाहिद – प्रियवर,महबूब,प्रेयसी 

Saturday, April 20, 2013

प्यार के रंगों से सजी जिंदगी




जब से बा-रंग हुई है जिंदगी,
खुद को ढूँढता फिरता हूँ मैं...
न जाने किस ओर गुम हो गया हूँ मैं,
हो गर वाकिफ़ तो बताओ पहचान मेरी......

कुछ इस तरह से है ; कि जिंदगी में,
भर आया है इक प्यार का दरिया...
डूब गया हूँ शायद मैं इसमे,
या तैर रहा हूँ मौजे-सुखन में...
नहीं एहसास अब कोई
इक दर्द-ए-इश्क के सिवा.....

इक पल में ठहर गई थी वो शाम,
जब कोई मेरे सिरहाने में आकर
चुपचाप दबी आवाज में कुछ कह गया था....
मेरे दिल के ‘फसील’ में कोई,
बे-आवाज हो गया था दाखिल,
तब से ठहरी हुई सी है जिंदगी मेरी...
और रुका हुआ हूँ मैं,
बस इक उस अदद आवाज के सहारे...

तमाम फासले जो इक अदद से,
हमारे दरम्यान फैला चुके थे अपनी बाजुएँ,
कि अचानक गुम हो गये,
उस एक लहजा में .....

और मेरी बाहों में सिमट आई तभी से,
प्यार के रंगों से सजी जिंदगी ......!!



मानव मेहता ‘मन’

  

Wednesday, April 10, 2013

तेरा नाम





शाम ढली तो लेम्प के इर्द-गिर्द
कुछ अल्फाज़ भिन-भिनाने लगे.......
‘टेबल’ के ऊपर रखे मेरे ‘राईटिंग पेड’ के ऊपर-
उतर जाने को बेचैन थे सभी ......

कलम उठाई तो गुन-गुनाई एक नज़्म-
मूँद ली आँखें दो पल के लिए उसको सुनने की खातिर
हुबहू मिलती थी उससे –
एक अरसा पहले जिसे मैंने सुना था कभी ....

आँख खोली तो देखा –
कुछ हर्फ़ लिखे थे सफ्हे पर ...
महक रहे थे तेरा नाम बन कर
चमक रहे थे ठीक उसी तरह –
काली चादर पर आसमान की –
चंद मोती चमकते हैं जैसे ......

तेरा नाम सिर्फ तेरा नाम ना रह कर –
एक मुकम्मल नज़्म बन गई है देखो .....

इससे बेहतर कोई नज़्म ना सुनी कभी
ना लिखी कभी ....... !!

मानव मेहता 'मन'