Friday, February 22, 2013

नया रिश्ता















तरो-ताज़ा लग रहा है आज ये मन मेरा,
जाड़ों की खिली धूप में नहा कर निकला हो जैसे...

जर्द पत्ते भी अब हरे हो गए हैं इसके,
टहनियों पर इसके खुशियों के फूल उग आये हैं...

बदला बदला सा लग रहा है आज हर मौसम,
इसकी दीवारों से दर्द के सीलन की महक हट गई है,
परदे भी कुछ उजले से नज़र आ रहें हैं मुझको...
और जो गम के काले साये बिखरे रहते थे हर तरफ,
जाने कहाँ इक ही लहजा में घूम गए हैं...

और जैसे किसी हांड़ी में रख दिए हों,
कुछ चावल पकने की खातिर-
ठीक वैसी ही महक इसके भीतर से आ रही है मुझको....

इसके भीतर कोई तो नई बात हुई है आज,
इसके भीतर इक ‘नया रिश्ता’ पक रहा है शायद......


मानव मेहता ‘मन’


Wednesday, February 13, 2013

तेरे लिए










जी चाहता है रंग दूँ सपनों को अपने,
हाथों  में  तेरे  हिना  भी  रंग  दूँ...


भर दूँ तेरी दुनिया खुशियों से हमदम,
आँचल  में  तेरे सितारे  भी  भर दूँ...

ना हो तेरी महफ़िल में पतझड़ का मौसम,
तेरे  चमन को हमदम  बहारों से भर दूँ...

तू  जो चले  मेरे जानिब  दो कदम,
इस जादा-ऐ-तलब को नज़ारों से भर दूँ... !!


मानव मेहता 'मन' 

Friday, February 08, 2013

वीरान-ए-बहार

Valentine Week Special :)










झुकी हुई पलकों से कुछ इशारे हो गए,
डूबते हुए नखुदा को सहारे हो गये...

उम्र भर चाहता रहा खुद को,
इक नज़र में गैर भी प्यारे हो गए...

नशा छाया तुम्हारा हम पे कुछ ऐसा,
बिन सोचे समझे हम तुम्हारे हो गए...

मुझे जब से फलक पर बिठा दिया है तुमने,
तबसे मेरे हमराह चाँद सितारे हो गए...

इक अदद से दिल मेरा सूना सा रहता था,
वीरानों में भी बहारों के नजारे हो गए....!!


Manav Mehta ‘मन’