सामने जब दरिया हो,तो फिर किनारा क्या है..?
साँस लेने दो मुझे दो घड़ी, दम तो लो
नहीं मालूम तुमको अभी,हमने देखा क्या है..?
अभी और भी ख़्वाब दबे हैं ,आँखों में
अभी तो एक ही टूटा है,तो रोता क्या है..?
ख़्यालों के आँगन में खिला था,फूल मोहब्बत का
अब जा के समझा कि ‘हर-सू’ महकता क्या है..?
तुम थक गए हो तो लौट जाओ, अपने रस्ते
हमारा तो ‘सर्वे-रवां’ है, हमारा क्या है..?
दिल टूटने की तो कभी आवाज़ नहीं आती
फिर ये शोर कैसा है,आखिर माज़रा क्या है..?
मानव मेहता 'मन'