Saturday, October 27, 2012

तेरे शब्द...



तेरे शब्द
चोट करते हैं
मुझ पर....

किसी लोहार के
हथोड़े कि मानिद...

मैं सोच रहा हूँ
आखिर
तुम मुझे __

किस शक्ल में
ढालना चाहती हो.....


Wednesday, August 08, 2012

रुखसत














इस वक्त यूँ लगता है कि सब कुछ मोहम्मल है
तू.... मैं..... और ये रब्त........ तेरा मेरा

ये हवाएं यूँ ही बेरंग चलती फिरती है रात भर
जाने कब रुकेगी,कहाँ थमेगी,कहाँ है इनका बसेरा...

अजीब से हालातों से गुजर रहा हूँ आजकल
खालीपन है आँखों में और अफसुर्दा है चेहरा.....

शाम ढल चुकी है अब जनाजा न उठा पाओगे तुम
अब तो मैं तभी रुखसत लूँगा जब होगा सवेरा....!! 


मानव मेहता 'मन' 

Sunday, July 22, 2012

नज़रों में अगर तू है














नज़रों में अगर तू है,तो फिर नज़ारा क्या है
सामने जब दरिया हो,तो फिर किनारा क्या है..?

साँस लेने दो मुझे दो घड़ी, दम तो लो
नहीं मालूम तुमको अभी,हमने देखा क्या है..?

अभी और भी ख़्वाब दबे हैं ,आँखों में
अभी तो एक ही टूटा है,तो रोता क्या है..?

ख़्यालों के आँगन में खिला था,फूल मोहब्बत का
अब जा के समझा कि हर-सू महकता क्या है..?

तुम थक गए हो तो लौट जाओ, अपने रस्ते
हमारा तो सर्वे-रवां है, हमारा क्या है..?

दिल टूटने की तो कभी आवाज़ नहीं आती
फिर ये शोर कैसा है,आखिर माज़रा क्या है..?


मानव मेहता 'मन' 

Sunday, May 13, 2012

रिश्ता.........




आओ दोनों लोहे की जंज़ीरों से बंध जायें...
दोनों सिरे मिलाकर एक जिंदा लगा दें,
सुना है कच्चे धागे का रिश्ता-
अक्सर टूट जाया करता है.......!!!

Tuesday, May 08, 2012

दर्द















वक्त को हथेली पर रख कर
ऊँगलियों पर लम्हें गिने हैं...
दर्द देता है हौले से दस्तक-
इन लम्हों के कई पोरों में बसा हुआ है वो....!!

ज़ब्त करती हैं जब पलकें,
किसी टूटे हुए ख्वाब को-
आँखों में दबोचती हैं
तब पिघलता नहीं है मोम-
बस टुकड़े चुभते हैं उस काँच के....!!

इन आँखों से अब पानी नहीं रिसता,
दर्द अब पत्थर हो चला है.....!!

Sunday, January 15, 2012

तेरी महक.......



















कुछ लफ्ज़ अपनी मोहब्बत के-
बिखेर दो मेरे आँगन....
इन हवाओं में घोल दो-
अपनी चाहत की नमी...!!
बरस जाओ बन के बादल
मेरे जिस्म-ओ-जां पर...
कि मेरी रूह का इक टुकड़ा भी प्यासा ना रहें...!!

उतर आओ सितारों के झीने से इक रोज,
और बाँट लो खुद को मेरी रगों में...
आहिस्ता आहिस्ता ;
पिघल जाओ बदन में मेरे-
कि ज़र्रे ज़र्रे से इसके सिर्फ तेरी महक आए....!!


                                   मानव 'मन'