Monday, April 25, 2011

किस ओर की अब राह लूँ मैं.........

किस ओर की अब राह लूँ मैं,
किस ओर मंजिल की डगर है,
हूँ खड़ा मैं सोचता पथ पर,
किस ओर जाऊं हर ओर तिमिर है...
इन्हीं अंधेरों में डूब गयी हर चाह मेरी,
किस ओर ले जाती है अब ये राह मेरी....


स्वप्न मेरे खो गये सब,
खो गयी सारी दिशायें,
मूक बन कर रह गयी अब,
मेरी सारी अभिलाषाएं....
गूंजती है उर में अब तो आह मेरी,
किस ओर ले जाती है अब ये राह मेरी........




फिर भी न जाने क्यूँ ह्रदय की,
डोर अब तक चल रही,
आँधियों के बीच में भी
किस तरह इक शम्मा जल रही,
जल चुकी है धूप में अब तो सांस मेरी,
किस ओर ले जाती है अब ये राह मेरी....


थक गया हूँ पर न जाने-
और कितना अभी चलना होगा,
इन पथरीले रास्तों पर,
और किता संभलना होगा,
गिरते-पड़ते निकल चली है जान मेरी,
किस ओर ले जाती है अब ये राह मेरी.......

Friday, April 15, 2011

आखिरी कलाम- बेबस ज़िन्दगी








ज़िन्दगी बेबस है इन ग़मगीन हालातों में,
उम्मीद का कोई सूरज नया उगा ले....
मेरी दुआएं कबूल हो ये मुमकीन नहीं लगता,
तू अपने लिए आशियाना कोई और नया बना ले...

ये चाहत के सपने, ये सपनों की बातें,
सपनों से बढ़ कर नहीं कोई अपना,
माना कि मुमकिन नहीं अपना मिलना,
मगर कोई ऐसा इक सपना तो सजा ले....


चला जाऊँगा दूर बहुत दूर इस जहाँ से,
तेरा दिल दुखाने न आऊंगा फिर से,
मगर जाते जाते ये चाहत है दिल की,
कि रूठे हुए को इक बार तो मना ले.....


है अलविदा दोस्तों, मुझे माफ़ करना,
अगर किसी को सताया हो मैंने,
पेश-ए-खिदमत है तुम्हारे आखिरी  कलाम मेरा,
है दुआ अब खुदा से कि वो मुझको उठा ले...


है दुआ अब खुदा से कि वो मुझको उठा ले...
है दुआ अब खुदा से कि वो मुझको उठा ले...






:-manav mehta


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