Saturday, September 11, 2010

आज गर्दे-राह हुआ.............

उम्र गुज़री थी, जिस आशियाने को सजाने में,
वही आशियाना मेरा, जल कर तबाह हुआ....

न जाने किस बात की सज़ा मिली मुझको,
न जाने कौन सा ऐसा, मुझसे गुनाह हुआ....

कतरा कतरा जोड़ कर, जो खुशियाँ समेटी थीं,
उन्ही खुशियों का तमाशा सरे राह हुआ...

जाने किस मोड़ से तेरा साथ छूट गया,
जाने किस मोड़ से दर्द-ओ-ग़म हमराह हुआ...

आस्ताने-यार तक पहुँच पाना मुनासिब नहीं लगता,
आ पड़ा पैरों में, वही मंजिले-गुज़रगाह हुआ...

है ज़माने की चाल बड़ी अजब क्या जानिये,
जो आफ़ताब हुआ करता था कभी, आज गर्दे-राह हुआ....


मानव मेहता