उनकी नज़रों ने मुझे फिर से जवाँ कर दिया,
मुझे छू कर मुझ पर, एहसान कर दिया...
कब से बैठी थी मैं, गुमसुम सी यूँ ही,
दिल में मिरे, इक तूफान कर दिया...
मेरा अब कुछ भी रहा नहीं मेरा,
नाम उसके मैंने जिस्म-ओ-जान कर दिया...
हाल-ए-दिल उसको बयान कर दिया...
मेरे जीने का थोड़ा सा, सामान कर दिया...
मानव मेहता
मानव मेहता