Sunday, November 28, 2010

मेरी दोस्त के नाम....

मेरा अरमान, मेरी ख्वाहिश, मेरी चाहत है तू,
मेरे होंठों पर सजी हुई, मुस्कराहट है तू...
तू ही मेरे जीने का सबब है ए सबा,
मेरी सांसों में बसी हुई सरसराहट है तू...

तूने ही मुझको जीना सिखाया है,
इक तूने ही मुझको अपना बनाया है..
तेरे लिए तो मेरे सातों जनम कुर्बान हैं,
मुझ पर तेरे लाखों ही एहसान हैं...

मेरे ज़िन्दगी में जब से तुम आई हो,
चारों तरफ जैसे खुशियाँ छाई हों...
कभी लगता है तुम अनजान हो जैसे,
कभी लगता है बरसों की पहचान हो जैसे...

जब कभी बेकार की ज़िद पकड़ बैठ जाती हो,
उस पल तुम मुझे बहुत सताती हो...

तेरी ख़ामोशी भी कभी बहुत कुछ कह जाती है,
और कभी तेरी कही बात भी समझ नहीं आती है...
तेरे हाथों को जब कभी थामता हूँ मैं,
खुद को नसीबों वाला मानता हूँ मैं...

जाड़ों की खिली हुई धुप हो तुम,
मेरे ख्वाबों का एक साकार रूप हो तुम...
चांदनी जब टहलती है मेरी छत पर रातों को,
सोचता हूँ उस वक़्त सिर्फ तुम्हारी ही बातों को...

तुझसे जुदा होना मुझे गवारा नहीं है,
तेरे सिवा मेरा कोई सहारा नहीं है...
थामा है जबसे तुमने मेरी दोस्ती का हाथ,
मिट चुकी है तबसे अँधेरे भरी रात...

अब तो दुआ है खुदा से की ये रिश्ता कभी न टूटे,
साथ रहे उम्र भर, ये साथ कभी न छूटे...

4 comments:

  1. क्या कहूँ ....निःशब्द हूँ .............
    दोस्ती का ये सफर यूँ ही चलता रहे.......चलता रहे.......चलता रहे और कदम साथ यूँ ही बढ़ते रहें .... बढ़ते रहें..... बढ़ते रहें............

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  2. शुक्रिया सुमन.........मेरी भी यही दुआ है की ये दोस्ती और ये साथ यूँ ही चलता रहे......

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  3. kabhi kuch mausam chale jate hai or laut ke nhi aate
    khubsurat rachna

    kabhi yaha bhi aaye
    www.deepti09sharma.blogspot.com

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आपकी टिपणी के लिए आपका अग्रिम धन्यवाद
मानव मेहता