Monday, November 29, 2010

एक दुआ दोस्त के नाम.....

तुझको इस ज़िन्दगी की हर चाहत नसीब हों,
हर कदम पर तेरे तुझे खुशियाँ नसीब हों....
चाँद तारे भी तुझे छूने की करे कोशिश,
तेरे क़दमों के नीचे, तुझे आसमान नसीब हों....


मुबारक हो तुझको, ये फूलों की रंगत,
गेसुओं को तेरे घटाएं नसीब हों.....
चेहरे पर चमके तेरे सूरज की किरनें,
हुस्न को बला की आदयें नसीब हों....


तेरा साया बन कर, तुझको हर ग़म से दूर रखूं,
मेरा साथ कुछ इस तरह से तेरे साथ नसीब हो....
और क्या दुआ मांगू, बस खुदा तुझे सलामत रखे,
मेरी इस उम्र की तुझको, हर सांस नसीब हो....


तुझको अपनी हर दुआ, हर आस नसीब हो,
मेरे प्यार की ना बुझने वाली, प्यास नसीब हो....

Sunday, November 28, 2010

मेरी दोस्त के नाम....

मेरा अरमान, मेरी ख्वाहिश, मेरी चाहत है तू,
मेरे होंठों पर सजी हुई, मुस्कराहट है तू...
तू ही मेरे जीने का सबब है ए सबा,
मेरी सांसों में बसी हुई सरसराहट है तू...

तूने ही मुझको जीना सिखाया है,
इक तूने ही मुझको अपना बनाया है..
तेरे लिए तो मेरे सातों जनम कुर्बान हैं,
मुझ पर तेरे लाखों ही एहसान हैं...

मेरे ज़िन्दगी में जब से तुम आई हो,
चारों तरफ जैसे खुशियाँ छाई हों...
कभी लगता है तुम अनजान हो जैसे,
कभी लगता है बरसों की पहचान हो जैसे...

जब कभी बेकार की ज़िद पकड़ बैठ जाती हो,
उस पल तुम मुझे बहुत सताती हो...

तेरी ख़ामोशी भी कभी बहुत कुछ कह जाती है,
और कभी तेरी कही बात भी समझ नहीं आती है...
तेरे हाथों को जब कभी थामता हूँ मैं,
खुद को नसीबों वाला मानता हूँ मैं...

जाड़ों की खिली हुई धुप हो तुम,
मेरे ख्वाबों का एक साकार रूप हो तुम...
चांदनी जब टहलती है मेरी छत पर रातों को,
सोचता हूँ उस वक़्त सिर्फ तुम्हारी ही बातों को...

तुझसे जुदा होना मुझे गवारा नहीं है,
तेरे सिवा मेरा कोई सहारा नहीं है...
थामा है जबसे तुमने मेरी दोस्ती का हाथ,
मिट चुकी है तबसे अँधेरे भरी रात...

अब तो दुआ है खुदा से की ये रिश्ता कभी न टूटे,
साथ रहे उम्र भर, ये साथ कभी न छूटे...

Friday, November 19, 2010

पतझड़........

मैंने देखा है उसको
रंग बदलते हुए....
हरे भरे पेड़ से लेकर,
एक खाली लकड़ी के ठूंठ तक.......
गए मोसम में,मेरी नज़रों के सामने,
ये हरा-भरा पेड़-
बिलकुल सूखा हो गया....
होले-होले इसके सभी पत्ते,
इसका साथ छोड़ गए,
और आज ये खड़ा है
आसमान में मुंह उठाये-
जैसे की अपने हालत का कारन,
ऊपर वाले से पूछ रहा हो....!!!!



इसके ये हालत,
कुछ मुझसे ज्यादा बदतर नहीं हैं,
गए मोसम में,
मुझसे भी मेरे कुछ साथी,
इसके पत्तों की तरह छुट गए थे......
मैं भी आज इस ठूंठ के समान,
मुंह उठाये खड़ा हूँ आसमान की तरफ.....

आने वाले मोसम में शायद ये पेड़,
फिर से हरा भरा हो जाएगा.....
मगर न जाने मेरे लिए,
वो अगला मोसम कब आएगा.....
जाने कब....???

लिख रहा हूँ मैं अपनी कलम के ठहरने तक....











ज़िन्दगी सुबह से लेकर शाम ढलने तक,
रात तडपाती है सिर्फ सुबह निकलने तक.....


इस दुनिया में अजीब लोग बसते हैं यारों,
जिंदा रहते हैं सिर्फ, सांस चलने तक...


और कब तलक गुलशन में खिजा का जोर चलेगा,
फूल भी बेबस हैं इक बूँद छलकने तक...


दीवाना हूँ न मेरी बातों पर गौर करो,
लिख रहा हूँ मैं अपनी कलम के ठहरने  तक....

Wednesday, November 17, 2010

कभी तो खुल के भी मिल......












कभी तो खुल के भी मिल मुझसे किसी मेहरबान की तरह,
मेरा ये दिल है खाली पड़े मकान की तरह...

तेरी चाहत का एहसास मुझे जिंदा रखे है,
वर्ना मेरी ज़िन्दगी तो है इक शमशान की तरह...

तू कुछ और नहीं सिर्फ मेरी अमानत है,
तुझको संभाले रखा है मैंने जिस्म-ओ-जान की तरह...

तेरी मोहब्बत से मेरे गुलशन में बहार आई है,
वर्ना पहले था ये चमन किसी वीरान की तरह...