Wednesday, September 30, 2009

तेरी ओर कौन सी डगर जाती है...


"नींद की चादर कभी खुलती नहीं, और रात गुज़र जाती है,
'तेरी तस्वीर देखते-देखते, मेरी तकदीर संवर जाती है...'

'कहने को तुम दूर हो मगर, पर 'दूर' कभी हुए नहीं हमसे,
'दिखते' हो तुम हर जगह, जहाँ कही ये 'नज़र' जाती है...'

'दिन भर तेरी यादों की, 'धुप' में जला करते हैं,
'शाम ढलते ही तेरी 'तन्हाई', दिल में उतर जाती है...'

'तुम भूल गए हो शायद, वो अपने 'वादे' दोस्ती के,
'मेरी 'खामियां' भी अब तुमको, 'गुनाह' नज़र आती है...'

'अगरचे' इस बार 'बिछडे', तो शायद ही मिल पायेंगे,
'इसी सोच पर अक्सर,मेरी 'धड़कन' ठहर जाती है...'

'कब 'मिलोगे हमसे ऐ 'दोस्त', उसी 'शक्ल' में वापिस,
'जिस 'सूरत' में तेरी 'दोस्ती' मुझे, 'जन्नत' सी नज़र आती है...'

'वही 'गली' है, वही 'मकान' है, वही 'शहर' है तेरा,
'मगर भूल गया हूँ तेरी ओर, कौन सी डगर जाती है..."

6 comments:

  1. अगरचे इस बार बिछडे तो शायद ही मिल पायेगें ...
    इसी सोच पर अक्सर मेरी धड़कन ठहर जाती है

    ये लाजवाब लगा .....!!

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सुंदर रचना......... दिल को छु गई...

    ReplyDelete
  3. bahut sundar aur pyari rachna, dil ko chti hui guzar gayi..

    bahut khoob likhte ho manav.

    ReplyDelete
  4. "नींद की चादर कभी खुलती नहीं, और रात गुज़र जाती है,
    'तेरी तस्वीर देखते-देखते, मेरी तकदीर संवर जाती है...'

    bahut khoob...

    'कहने को तुम दूर हो मगर, पर 'दूर' कभी हुए नहीं हमसे,
    'दिखते' हो तुम हर जगह, जहाँ कही ये 'नज़र' जाती है...'

    achha ashrar ban paya hai..

    'दिन भर तेरी यादों की, 'धुप' में जला करते हैं,
    'शाम ढलते ही तेरी 'तन्हाई', दिल में उतर जाती है...'

    kya kehne

    'अगरचे' इस बार 'बिछडे', तो शायद ही मिल पायेंगे,
    'इसी सोच पर अक्सर,मेरी 'धड़कन' ठहर जाती है...'

    sabse badiyaaaaaaa

    'वही 'गली' है, वही 'मकान' है, वही 'शहर' है तेरा,
    'मगर भूल गया हूँ तेरी ओर, कौन सी डगर जाती है..."

    umda rachna keh dali janab.......

    ReplyDelete
  5. दर्द ........दोस्ती का रिश्ता काफी गहरा होता है ......भूलाए नहीं भूलता.......

    ReplyDelete

आपकी टिपणी के लिए आपका अग्रिम धन्यवाद
मानव मेहता