Friday, September 04, 2009

कलंदर दिखाई देंगे

"मेरी 'आँखों' को जब कभी, वो 'मंज़र' दिखाई देंगे;
'आस्तीनों' में खुबे हुए वो 'खंजर' दिखाई देंगे...

'आँखों' में 'तैरता' हुआ वो 'मोहब्बत' का 'दरिया';
'बाँहों' में सिमटे हुए वो 'समंदर' दिखाई देंगे...

एक वो 'शख्स' जो मिलता था हमसे, 'भेष' बदल कर;
'चहरे' के पीछे छिपे हुए, वो 'कलंदर' दिखाई देंगे....

'पूज' कर 'वफ़ा' को, जो 'प्यार' का 'मंदिर' बनवाया था;
वही 'ताजमहल'  फिर हमें,  'बंजर'  दिखाई देंगे....

जिन 'आँखों,  में यार की,  'मूरत'  बसा करती थी;
उन 'आँखों'  में चुभे हुए,  'नश्तर'  दिखाई देंगे....

ढूंढ़ते  हो जिन को,  'दुनिया'  की ' भीड़'  में;
 वो मेरे 'कातिल', मेरे ही 'अन्दर' दिखाई देंगे....."

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मानव मेहता