Saturday, September 19, 2009

दुल्हन की तरह अब सँवरने लगी है.....


"साँसे भी अब तो, 'ढलने' लगी है,'
'लगता है की, जैसे 'उम्र' 'गुज़रने' लगी है.'

'चंद 'ख्वाहिशों' की उम्मीद, जो थी इस 'ज़िन्दगी' से,'
'वो भी अब तो जैसे, 'बिखरने' लगी है.'

'उतार' फैंक दी उसने 'हाथों' से, मेरे 'प्यार' की 'निशानी,'
'शायद' 'वो' भी अब, 'दुनिया' से डरने लगी है.'

'है 'अफ़सोस' की तू, मेरी न हो पाएगी कभी,'
'है 'ख़ुशी' मगर, तेरी 'झोली' 'खुशियों' से भरने लगी है.'

'मेरा क्या है, क्यों बहाते हो 'आंसू' मेरे लिए ?
'मेरी 'शम्मा' तो 'ज़िन्दगी' की धीरे-धीरे, 'बुझने' लगी है.'

'ये दूर कही 'शहनाइयों' की आवाज़, सुनाई दी है मुझको,'
'शायद वो 'दुल्हन' की तरह, अब 'सँवरने' लगी है."

5 comments:

  1. prem kee peeda prtyek panktee men samahit hai.
    - ashok lav

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  2. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! मेरे अन्य ब्लोगों पर भी आपका स्वागत है!
    मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण कविता लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है!

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  3. विरह् वेदना लिये संवेदनशील अभिव्यक्ति है शुभकामनायें

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  5. विरह की पीड़ा लफ्जों में उभर आई है......

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आपकी टिपणी के लिए आपका अग्रिम धन्यवाद
मानव मेहता