Wednesday, September 30, 2009

तेरी ओर कौन सी डगर जाती है...


"नींद की चादर कभी खुलती नहीं, और रात गुज़र जाती है,
'तेरी तस्वीर देखते-देखते, मेरी तकदीर संवर जाती है...'

'कहने को तुम दूर हो मगर, पर 'दूर' कभी हुए नहीं हमसे,
'दिखते' हो तुम हर जगह, जहाँ कही ये 'नज़र' जाती है...'

'दिन भर तेरी यादों की, 'धुप' में जला करते हैं,
'शाम ढलते ही तेरी 'तन्हाई', दिल में उतर जाती है...'

'तुम भूल गए हो शायद, वो अपने 'वादे' दोस्ती के,
'मेरी 'खामियां' भी अब तुमको, 'गुनाह' नज़र आती है...'

'अगरचे' इस बार 'बिछडे', तो शायद ही मिल पायेंगे,
'इसी सोच पर अक्सर,मेरी 'धड़कन' ठहर जाती है...'

'कब 'मिलोगे हमसे ऐ 'दोस्त', उसी 'शक्ल' में वापिस,
'जिस 'सूरत' में तेरी 'दोस्ती' मुझे, 'जन्नत' सी नज़र आती है...'

'वही 'गली' है, वही 'मकान' है, वही 'शहर' है तेरा,
'मगर भूल गया हूँ तेरी ओर, कौन सी डगर जाती है..."

दर्द की शाम......












"दर्द की शाम ढल नहीं सकती,
'मेरी 'किस्मत' बदल नहीं सकती.'

'वो जो कहते थे 'बेवफा' मुझको,
'उनकी 'आदत' बदल नहीं सकती.'

'जिनके हिस्से में 'डूबना' है लिखा,
'कश्तियाँ' उनकी 'संभल' नहीं सकती.'

'मैंने देखा है 'मोहब्बत' का चेहरा ऐसा,
'की फिर से 'तबियत' मचल नहीं सकती.'

'अब तो 'मुश्किल' है 'ठहरना' 'यारों,
'ये 'मौत' मेरी अब टल नहीं सकती.'

'मैंने 'चाहा' 'वो' जो मिल नहीं सकता,
'दिल की यह 'हसरत' निकल नहीं सकती."


मानव मेहता 

मौत मांगता हूँ




"मौत मांगता हूँ अब, तो वो आती नहीं,
ज़िन्दगी से अब डर लगने लगा है मुझे,
क्या कहूँ कैसा हाल हो गया है अब मेरा,
हर कोई 'बेवफा' लगने लगा है मुझे..."

न हो सकी..


"महफिल तो सजा दी थी तुने,
इक चाँद की तरह,
पर अफ़सोस उसमे रौशनी,
सितारों जितनी भी न हो सकी..

दिल की....

दिल की बात को, होंठों पर लाने से क्या मिला ?
कहना ही क्या, मुफ्त में 'बदनाम' हो गए हैं...

Monday, September 28, 2009

चले गए.......


"नज़रें मिलाने को कहा हमने उनसे,तो नज़रें झुका कर चले गए,'
'दिल लगाने को कहा हमने उनसे तो दिल तोड़ कर चले गए,'
'ऐसी भी क्या नज़र आये कमी मुझमे उनको,
'जो प्यार का इज़हार किया हमने उनसे तो मुंह मोड़ कर चले गए...."

Sunday, September 27, 2009

खुद ही रोने आयेंगे...


"लाश पर अपनी,
 हम खुद ही कफ़न बिछायेंगे,
जब रोने वाला होगा न कोई,
तो खुद ही रोने आयेंगे..."

याद तुम्हारी है...


"दिन को चैन नहीं की हर वक्त 'याद' तुम्हारी है,'
'रात को भी आँखों में 'तस्वीर' सिर्फ तुम्हारी है,'
'कैसे पुकारूँ तुझको जो सुन ले तू दिल की 'सदा,'
'अब तो इस दिल में बसी हर इक ,'धड़कन' भी तुम्हारी है...."

गुफ्तगू......


"गैरों को बात करने का 'शौक' नहीं हमसे,
'अपने भी 'गुफ्तगू' करते नहीं है अब,
'क्या करे इस 'दिल' का 'चैन' कहीं पता नहीं,
'ज़िन्दगी भर यूँ ही 'तन्हा' रहेंगे हम......."

तम्मन्ना-ऐ-जुबान



"तम्मन्ना-ऐ-जुबान' तो है दिल में अभी भी,

पर 'खैर-ख्वाह' है वो जिसे सुनाना 'मुहाल' है मुझे...."

तो अच्छा होता....

"तेरी 'जुल्फ' अगर खुल के बिखर जाती, तो अच्छा होता,
'इस 'शाम' की 'तकदीर' संवर जाती, तो अच्छा होता....'

'यूँ तो तेरा 'सफ़र' है, कुछ 'लम्हा' ही मेरे साथ,
'जो मंजिल तेरी कुछ दूर होती, तो अच्छा होता....'

'न मालूम कौन हो तुम, क्या नाम है 'तुम्हारा',
'होती कुछ 'पहचान' अपनी, तो अच्छा होता....'

'रहेगा 'उम्र-भर' याद मुझको, ये 'सफ़र' अपना,
'तुमको भी ये 'मुलाकात' याद रहती, तो अच्छा होता....'

'तुझसे करना चाहता था, मैं 'दो बात' अपने 'दिल' की,
'जो 'इजाज़त' तेरी 'मुझको' मिल जाती, तो अच्छा होता...."

खुदा किस तरफ...



"कभी मौत चाहते है,
तो कभी तुझे,
अब देखते है खुदा
किस तरफ 'मेहरबान' होता है...."

सहारा है....



"तुम्हारी याद में लिखने बैठा हूँ,
'हर वक्त तसव्वुर तुम्हारा है,'
'इन निगाहों को हटाना ना मुझसे,
'मुझे बस इनका ही सहारा है...."

Saturday, September 26, 2009

दीदार....



"करा दे 'यार', अपना 'दीदार',
'फिर इक बार मुझे,
अपनी 'सूरत' दिखा कर,
'मुझे' 'जीने' की 'इजाज़त' दे दे..."

आजकल.......



"बात करने में वो, 'इतराते' हैं आजकल,'
'नज़र' मिलाने से, 'घबराते' हैं आजकल,'
'न जाने अब क्या हो गया है उनको,'
'हर 'सच' से वो, 'कतराते' हैं आजकल......."


नाम....

"किस नाम से पुकारूं,
 'तुझको' अब मैं,

'पत्थर'
दिल कहूँ ,

या कहूँ
'बेवफा'...."

वफा का असर ..

"ये मेरी 'वफा' का असर है,
                                  या तेरी 'जफ़ा' का......
'जब भी देखो राह पर,
                                'अकेला' भटकता हूँ...."

आरजू

"काश किसी शाम, तुझे अपने आँगन में खडा पाऊं,
'तू हो सामने खड़ी, बस तुझे ही देखता जाऊं...'

'गुज़र जाए गर इस कदर, कई सदियाँ फिर भी,
'तेरे शबाब पर से मैं, न अपनी नज़र हटाऊं...'

'रहते हो खोये, ना जाने तुम किन ख्यालों में,
'तमन्ना है मेरी, की मैं भी तुम्हारे ख्यालों में आऊँ...'

'बढा कर प्यास मेरी, तुम छुडाना न दामन,
'दिल चाहे, की तेरे आँचल की पनाह पाऊँ....'

'क्यूँ करते हो तुम इस कदर, बुझी-बुझी सी बातें,
'तू कहे, तो तेरे दामन को, सितारों से सजाऊँ..."

कौन पहचानेगा तुझे...............???

"कौन है तेरा वहां, किस के पास जायेगा अब तू,
'कौन पहचानेगा तुझे, बस्ती में जो जाएगा अब तू....'

'वो तो बनते है तेरे सामने, तजाहुल-पेशगी*,
'बाद ए मौत ही उसका साथ, पायेगा अब तू....

'सुराब* न निकले, उनकी भी ये दोस्ती कहीं,
'दुआ कर ले खुदा से, वर्ना मर जाएगा अब तू.....'

'हर वक्त तो रहती है आँखों में, यार की गर्दे राह*,
'किस तरह प्यार उसको, दिखा पायेगा अब तू....'

'कब तक उठाये फिरेगा, तू ये बारे-मिन्नत*,
'कर दे वापिस इसको वरना थक जाएगा अब तू....'

'वो शख्स तो है जालिम और जां-गुसिल कब से,
'क्या उसका ये बेदाद*, सह पाएगा अब तू.....'

'न कर उम्मीद किसी से की कोई आएगा पास तेरे,
'इक खलिश* का ही हमराह बन कर, रह जाएगा अब तू...'"

 
 
 
 
*तजाहुल-पेशगी- जान बुझ कर अनजान बनना,
*सुराब- छलावा,
*गर्दे राह- रास्ते की धूल,
*बारे मिन्नत- एहसानों का बोझ,
*जां- गुसिल- प्राण घातक,
*बेदाद- अत्याचार,
*खलिश- चुभन,

Friday, September 25, 2009

दोस्त........


ज़िन्दगी में आते है कई मोड़ ऐसे,
जिन पर सिर्फ इक दोस्त दिखाई देता है...
चले जाते है बिना सोचे समझे उसकी तरफ,
और बाद में फिर दगा भी वही देता है...

आता है हमें.........


दिल क जख्मों को छुपाना आता है हमें,
उनकी बेवफाईयों को दबाना आता है हमें,
ये सब हो जाता है बड़ी आसानी से,
  क्योंकि अब भी मुस्कुराना आता है हमें...

क्या सुनना चाहोगे?


रोज कहते हो की कुछ सुना दो हमको,
क्या सुनना चाहोगे ये बता दो हमको....
ग़म ए दर्द सुनाएं या करे ख़ुशी का इज़हार,
क्यूंकि सब कुछ तो दिया है तुमने ही हमको......

Thursday, September 24, 2009

नहीं रहता ता-उम्र तक....


नहीं रहता ता-उम्र तक हमसफ़र कोई,
गर मालूम होता तो दिल को लुटाता न मैं.....
तरसना होगा मुझे बाद-ए-मौत भी दीदार को उनके,
खबर होती तो उनकी रह-गुजर में जाता न मैं........

दूरी क्यों है??????????




पास रह कर भी दिलों में दूरी क्यों है,
मुझसे दूर रहने की तुम्हारी ये मजबूरी क्यों है,
समझ सको तो समझ लो इन आँखों की जुबान,
हर इक बात लब से कहें ये जरुरी क्यों है.

Wednesday, September 23, 2009

अकेला...



अकेला आया था,अकेला हूँ, अकेला ही चला जाऊँगा,
कोई नहीं लगता जिसका मैं साथ पा जाऊँगा,
पूरी ज़िन्दगी लोगों ने मुझे आंसू ही दिए,
फिर भी जाते-जाते मैं लोगों को हंसा जाऊँगा.....

बिस्तर...


"हर रात बिस्तर मेरा,
शिकायत करता है मुझसे...
हर सुबह वो रो-रो कर,
सो जाता है तन्हा...."

Saturday, September 19, 2009

दुल्हन की तरह अब सँवरने लगी है.....


"साँसे भी अब तो, 'ढलने' लगी है,'
'लगता है की, जैसे 'उम्र' 'गुज़रने' लगी है.'

'चंद 'ख्वाहिशों' की उम्मीद, जो थी इस 'ज़िन्दगी' से,'
'वो भी अब तो जैसे, 'बिखरने' लगी है.'

'उतार' फैंक दी उसने 'हाथों' से, मेरे 'प्यार' की 'निशानी,'
'शायद' 'वो' भी अब, 'दुनिया' से डरने लगी है.'

'है 'अफ़सोस' की तू, मेरी न हो पाएगी कभी,'
'है 'ख़ुशी' मगर, तेरी 'झोली' 'खुशियों' से भरने लगी है.'

'मेरा क्या है, क्यों बहाते हो 'आंसू' मेरे लिए ?
'मेरी 'शम्मा' तो 'ज़िन्दगी' की धीरे-धीरे, 'बुझने' लगी है.'

'ये दूर कही 'शहनाइयों' की आवाज़, सुनाई दी है मुझको,'
'शायद वो 'दुल्हन' की तरह, अब 'सँवरने' लगी है."

Tuesday, September 08, 2009

पंजाबी ग़ज़ल

अपनी डायरी के पन्नों में से एक पंजाबी ग़ज़ल आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ....उम्मीद है आपको यह पसंद आएगी.... आपकी समीक्षाओं का इंतज़ार रहेगा....


"ਖੁਦ  ਨੂੰ  'ਤੇਰੇ  ਵਰਗਾ'  ਅੱਸੀਂ  'ਬਣਾ'  ਨਾ  ਸਕੇ,
ਆਪਣੇ  'ਦੁਖਾਂ'  ਨੂੰ  'ਦਿਲ'  ਵਿਚ  'ਛੁਪਾ'  ਨਾ  ਸਕੇ....

'ਉਕੇਰ'  ਦਿਤੇ  ਆਪਨੇ  ਸਾਰੇ  'ਗਮ', 'ਲਫਜਾਂ'  ਦੇ  ਰਾਹੀਂ,
'ਪਰ  ਤੇਰੀ  ਨਿਕੀ  ਜਿਹੀ  'ਤਸਵੀਰ'  ਵੀ,  ਅੱਸੀਂ  ਬਣਾ  ਨਾ  ਸਕੇ....

'ਉੰਨਾਂ  'ਖੂਬਸੂਰਤ'  ਪੱਲਾਂ  ਨੂੰ  ਅਸਾਂ  'ਪੀਰੋ'  ਲਿਯਾ, ਇਕ  'ਹਾਰ'  ਦੇ  ਵਿਚ,
'ਪਰ  ਉਸ  'ਗੱਲ'  ਦੇ  'ਹਾਰ'  ਨੂੰ ,ਕਦੇ  'ਗੱਲ'  ਵਿਚ  'ਪਾ'  ਨਾ  ਸਕੇ.....

'ਤੈਥੋਂ  ਵਿਛੜ'  ਕੇ  ਕੁਝ  ਇੰਜ,  ਸਾਡੀ  'ਜਿੰਦਗਾਨੀ'  ਹੋ  ਗਈ,
ਕਦੇ  'ਰੋ'  ਨਾ  ਸਕੇ,  ਕਦੇ  'ਹਸ'  ਨਾ  ਸਕੇ....

'ਤੇਰੀ  'ਯਾਦ'  ਸਾਡੀ  'ਅਖਾਂ'  ਦੇ  ਵਿਚ, 'ਹੰਜੂ'  ਬਣ-ਬਣ  'ਤੈਰਦੀ'  ਰਹੀ,
ਪਰ  ਆਪਣੇ  'ਚਿੱਤ'  ਦਾ  ਹਾਲ,  ਕਦੇ  'ਸੁਣਾ'  ਨਾ  ਸਕੇ...

'ਤੇਰੇ  ਵਰਗੀ,  ਇਕ  'ਹੋਰ'  ਲਭਨੀ  'ਮੁਸ਼ਕਿਲ'  ਸੀ,
ਏਸ  ਕਰਕੇ  ਅੱਸੀਂ  ਕਿਸੇ  ਹੋਰ  ਦਾ,  'ਸਹਾਰਾ'  ਕਦੇ  ਪਾ  ਨਾ  ਸਕੇ.....

'ਤੂੰ'  'ਇੰਜ'  ਨਾ  ਸੋਚੀਂ,  ਤੇਰੇ  ਲਈ  ਅੱਸੀਂ  'ਬਰਬਾਦ'  ਹੋ  ਗਏ,
ਓਹ  ਤਾਂ  'ਕਿਸਮਤ'  ਹੀ  ਅਜਿਹੀ  ਸੀ,  ਕੇ  'ਆਬਾਦ'  ਹੋ  ਨਾ  ਸਕੇ...

'ਬਸ  ਸਾਨੂੰ  'ਮੁਆਫ'  ਕਰ  ਦੇਵੀਂ,  ਜੇ  ਕਦੇ  ਤੈਨੂੰ  ਪਤਾ  ਲਗੇ,
ਕੀ  'ਤੈਨੂੰ'  ਦਿਤੇ  ਹੋਏ  'ਵਾਦੇ',  ਅਸਾਂ  ਕਦੇ  'ਨਿਭਾ'  'ਨਾ'  ਸਕੇ...."

Friday, September 04, 2009

मेरा ख्याल

इस शाम की देहलीज़ पे,
कभी कोई दस्तक हो,
जो खोलूं दरवाज़ा,
तो सामने खड़ी तू हो...
तेरे आने से शायद,
कुछ करार आ जाए,
वरना बेकरार मेरी,
ये शामें सारीं हों....
तू आये तो अपनी हथेलियों में,
तेरे मुंह को छिपाऊँ,
और फिर तेरे होठों पर मेरी,
इक हल्की सी पारी हो...
फिर तुझे मैं बसा लूँ,
अपने आंखों के आईने में,
उसके बाद फिर तुझसे दो बात मेरी हो...
बस इसी ख्याल में हर शाम,
खो जाता हूँ मैं,
की कम से कम - आज तो,
इक मुलाकात हमारी हो...
तू आये पास मेरे,
तुझसे करूँ मैं प्यार,
ना जाने कब ऐसी,
ये किस्मत हमारी हो....

कलंदर दिखाई देंगे

"मेरी 'आँखों' को जब कभी, वो 'मंज़र' दिखाई देंगे;
'आस्तीनों' में खुबे हुए वो 'खंजर' दिखाई देंगे...

'आँखों' में 'तैरता' हुआ वो 'मोहब्बत' का 'दरिया';
'बाँहों' में सिमटे हुए वो 'समंदर' दिखाई देंगे...

एक वो 'शख्स' जो मिलता था हमसे, 'भेष' बदल कर;
'चहरे' के पीछे छिपे हुए, वो 'कलंदर' दिखाई देंगे....

'पूज' कर 'वफ़ा' को, जो 'प्यार' का 'मंदिर' बनवाया था;
वही 'ताजमहल'  फिर हमें,  'बंजर'  दिखाई देंगे....

जिन 'आँखों,  में यार की,  'मूरत'  बसा करती थी;
उन 'आँखों'  में चुभे हुए,  'नश्तर'  दिखाई देंगे....

ढूंढ़ते  हो जिन को,  'दुनिया'  की ' भीड़'  में;
 वो मेरे 'कातिल', मेरे ही 'अन्दर' दिखाई देंगे....."

आँखों की जुबान











"सुना है 'आँखों' की 'जुबान' होती है....
'ब्यान' करती है, यह 'दिल' के सब हाल,
गर ऐसा है तो बताओ मुझको भी जरा ;
जान जाऊं मैं भी उसके, सब 'जज़्बात-ओ-ख्याल'......

'वो' बैठें पास 'मेरे', और 'नज़रों' से 'नज़रें' मिलाएं;
'आँखों' की 'जुबान' से, वो दिल का 'राज' बताएं....
तो कैसे जानूं की उसकी 'आँखें' क्या कहती हैं ;
मुझे तो उसकी 'आँखों' में सिर्फ 'गहराई' नज़र आती है......

जी चाहता है, उस 'गहराई' में दूर तक 'उतरता' जाऊं ;
कोई दे 'सदा' फिर भी पलट कर न आऊँ....
इन 'आँखों' के 'रास्ते' उसके दिल तक 'उतरना' चाहता हूँ ;
चाहे कुछ भी हो जाए, इन 'आँखों' से 'प्यार' करना चाहता हूँ......

नई दोस्त

क्या मेरी 'नयी दोस्त' से मिलोगे?
एक ऐसी दोस्त; जो मेरे, चोबिसों घंटे साथ रहती है...
हर पल, हर जगह,
मेरे साथ चलती है..
जहाँ कहीं भी मैं 'चलता' हूँ,
जहाँ कहीं भी मैं 'रुकता' हूँ-
एक छोटे से 'लम्हे' के लिए भी-
मुझसे 'जुदा' नहीं होती..
'जीवन संगिनी' की तरह मेरे साथ,
कदम से कदम मिला कर चलती है,
उसका नाम है--
"घुटन"
 
यह घुटन है रूप;  'अकेलेपन' का....
यह घुटन है रूप;  'तन्हाई' का....
यह घुटन है रूप;  उस 'याद' का-
जो तुम मुझे दे कर चले गए हो....
 
'सबा' ;  तुम तो चले गए हो 'अकेले',
मगर मुझे छोड़ गए हो,
 इस नए साथी,
 इस  नए  'हमसफ़र'  के साथ.....
 
 'घुटन',  'घुटन',  'घुटन'........
और सिर्फ  'घुटन'-----
एक अजीब सा आलम है-- 
इस 'घुटन' का....
तलाश करता हूँ -
इस 'आलम' में खुद को...
खोजता हूँ अपने वजूद को...
ढूंढ़ता  हूँ उन पलों को-
जो 'पल' कभी हमने साथ ;
इक साथ गुजारे थे...
वो पल जो गवाह हैं,
हमारे 'प्यार' के...
 
मगर इस आलम में,
मुझे मिलता है --
सिर्फ... 'अकेलापन'....
उन पलों की बस याद ही,
मेरे पास रह गयी है--
और साथ रह गयी है---
मेरी यह -- " नयी दोस्त...................
...................."

Thursday, September 03, 2009

मेरा अहम

मेरा अहम अब तो मुझसे भी बडा होने लगा है,
इसके तले मेरा वजूद भी अब तो खोने लगा है...
जहाँ कहीं, जिस भी जगह, तुम हुआ करते थे,
अब तो उस हर एक जगह, सिर्फ मैं होने लगा है...


मेरी ज़िन्दगी में अब तो तुम्हारा कोई निशाँ ही नहीं,
शायद इसलिए मेरा पहले जैसा जहाँ भी नहीं...
ना जाने किस मोड़ पर तुम; तुम बन गए और मैं; मैं,
अब सोचता हूँ तो इस बात का पता लगता ही नहीं...

मेरा अहम मुझसे न जाने कितने रिश्तों की और बलि चढ़वायेगा,
लगता नहीं अब, की मैं कभी खुद से मिल पाऊँगा...
हर बात पे ये अब तो, मुझ पर हावी होने लगा है,
और इसके तले, मेरा वजूद भी अब तो खोने लगा है...

मेरा अहम अब तो मुझसे भी बडा होने लगा है.....

मेरी गरीबी

अजीब है, की मेरा घर, पानी में डूबा पडा है,
मेरी आँख का समंदर, फिर भी सूखा पडा है..

दो वक़्त की रोटी भी, मय्यसर नहीं उसको,
तंगदस्ती की हालत में, मेरा बच्चा भूखा खड़ा है...

मैं अपने पैरों, को अपनी चादर के अन्दर समेट तो लेता,
मगर मेरा पैर, मेरी चादर से दोगुना बड़ा है..

अगले साल इसको, मरम्मत करवा ही लूँगा,
मेरी छत का छप्पर, जो बरसो से टूटा पडा है..


उम्मीद नहीं की आज की रात, चूल्हा भी जल पायेगा,
आटे की तरह बालन भी, गीला पड़ा है..
 
मैं किस के साथ तुझे विदा करूँ, तू ही बता,
हर कोने वो 'हैवान' मुंह बाए खडा है.. 
 
मेरी बीवी समझदार है, कुछ नहीं कहती,
मगर सालों से उसका गला भी सूना पड़ा है..
 
अब मिटटी का घोड़ा, उसको कहाँ से लाकर दूंगा,
मेरा बच्चा हो कर भी, बच्चों सा जिद पर अडा है..

Wednesday, September 02, 2009

काश की तुम मेरी ज़िन्दगी में न आये होते..

काश की मेरी आँखों में ये नूर न होता,
मुझे अपने आप पे इतना गरूर न होता..
मेरी ये हंसी किसी दिल को न तडपाती,
मुझे देख कर न किसी की आह निकल पाती..

यूँ होता की मेरे होंठ भी दर्द की दास्ताँ होते,
मेरे दिल के हालात इनके ज़रिये तो ब्यान होते..
मेरे ख्वाबों की भी कभी कोई सहर तो आती,
मुझ पर यूँ उसकी नज़र ठहर तो न जाती..

मेरे हाथों की लकीरों में यूँ तेरा नाम न होता,
तो मेरी दुनिया का शायद कुछ और ही मुकाम होता..
अपनी ज़िन्दगी को अपने हाथों से यूँ न खोते,
काश की तुम मेरी ज़िन्दगी में न आये होते..

हमारा रिश्ता

और कुछ समय के बाद,
सब कुछ छूट जाएगा,
तुम अपनी ज़िन्दगी में
मशरूफ हो जाओगे,
मैं अपने कामों में डूब जाऊँगा,
और इस रिश्ते का सफ़र,
वहीँ ख़तम हो जाएगा....




न चाहते हुए भी तुम
मुझको भूल जाओगे,
अपनी बाकी की ज़िन्दगी में
मुझको न ढूंढ पाओगे,
मेरा साथ - एक बीता हुआ
लम्हा बन कर रह जाएगा,
और इस रिश्ते का सफ़र
वहीँ ख़त्म हो जायेगा...

जब कभी यादों पे पड़ी धूल को-
साफ़ करोगे तुम
बस एक धुंधला सा चेहरा,
तुम्हारी नज़रों में बन पायेगा,
इसके अलावा और कुछ भी
न याद रहेगा ,तुमको
और इस रिश्ते का सफ़र
वहीँ ख़त्म हो जायेगा...

Tuesday, September 01, 2009

जाने मेरी शराफत किधर गयी

रात आई और न जाने यूँ गुजर गयी,
लगता है चन्द लम्हों में ज़िन्दगी संवर गयी..


खवाब कुछ और सज गए इन आँखों में,
पलकों पर ओस की बूंदें ठहर गयी..


ओढ़ रखी है आज भी आसमान की चादर हमने,
मगर आज न जाने कहां सितारों की लहर गयी..


ऊंगलियाँ तरसती रही वो नाज़ुक सा एहसास पाने को,
निगाहें करती रही पीछा खुशबू उसकी जिधर गयी..


ना आये वो पास तो शायद यह बेहतर होगा,
आजकल न जाने मेरी शराफत किधर गयी..

एक अकेला शख्स











और कुछ देर में चाँद, बादलों से घिर जायेगा..
बुझ जायेगी शमां अँधेरा रोशन हो जायेगा...
तन्हाई के इस सीले से मौसम में,
फिर कोई दर्द के अलाव जलाएगा...

थक-हार कर बैठ के शबिस्तानों में अपने, वह
तन्हाई समेटेगा और गम की चादर बिछायेगा....
है जिस की खवाहिश उसको रात की इस घडी में,
वो शख्स उससे मिलने आखिरी-ए-शब् तक न आ पायेगा...

इस वक़्त वह अकेला है तो उसे अकेला रहने दो,
इस तन्हाई में ही वो खुद को हल्का कर पायेगा...
ये उदासी, ये आंसू ही उसको कुछ सहारा दे पायेंगे,
वरना वो अपने दिल पर इक बोझ ढोता जायेगा....

जब सूख जायेगा पानी उसकी आँखों का बह-बह कर,
वो खुद ही फिर यहाँ से चुप-चाप चला जायेगा....
शायद यही आंसू उसको कुछ होंसला दें पायें फिर से,
और तभी शायद वो अपने खोये लम्हे तालाश कर पायेगा....

सिर्फ ऐसी ही रातें तो अब उसकी ज़िन्दगी का सरमाया है,
यही कसक है जो उससे बादे-मौत भी जुदा न हो पायेगा...
इक आखिरी-पहर तो उसको उसको चैन से जी लेने दो दुनिया वालों,
कल तक तो वो तुम्हारे लिए अपना सब कुछ लुटा जाएगा...

तुम तंगदिल थे और हमेशा तंगदिल ही रहोगे,
जाने कब तुम्हें उसके जज्बातों का एहसास हो पायेगा...
तुम देते रहे हो और देते रहना आगे भी उसको बद्दुआएं,
फिर भी मरता हुआ, हंस कर वो तुम्हें दुआ दे जायेगा....